शहडोल।।
शहडोल स्वास्थ्य विभाग की कार्यवाही में लगे कोढ़ को कुछ दिन तक उपचार मिला था जिसका इलाज ऐसा चल रहा था मानो अब किसी को झोलाछाप या अवैध डाक्टरी का खाज नही रहेगा न ही इनके इलाज से कोई अछूता रहेगा किन्तु पाण्डेय ने विभाग को ही ऐसा खाज दे दिया कि पूरा स्वास्थ्य अमला अब अपने खाज का उपाय ढूँढ रहा है।
*पहले हुई कार्यवाही फिर चंद दिनों में खुल गया ताला*
बुढ़ार-जैतपुर मार्ग में जरवाही ग्राम में पाण्डेय नामक झोलाछाप डाक्टर आज दशको से वहाँ इलाज कर रहा है यही नही कथित झोलाछाप इस क्लीनिक के साँथ मेडिकल स्टोर भी खोल रखा है पाण्डेय के पास किसी प्रकार का कोई अनुज्ञा नही है जिसे स्वास्थ्य अमला स्वीकार कर सके फिर भी पाण्डेय इस मुख्यमार्ग में धड़ल्ले से ग्रामीणों को बिना पैमाने का इलाज बाँट रहा है।विभाग की कार्यवाही में सवाल उठना तो लाजमी है कि अगर पांडेय के पास इलाज की सभी योग्यताएँ थी तो फिर विभाग ने क्या देखकर कार्यवाही की और अगर कार्यवाही हुई तो फिर कुछ ही दिनों में सब कुछ ठीक कैसे हो गया क्या पाण्डेय मात्र 10-15 दिनों में स्वास्थ्य अमले का मानक पूर्ण कर लिए या फिर कहीं से एमबीबीएस या एमडी डिग्री की पढ़ाई पूर्ण कर ली।
*ड्रग इंस्पेक्टर का अपना अलग सिस्टम*
ड्रग असोसिएशन की मानें तो दवाई दुकान खोलने के लिए बी फार्मा,डी फार्मा या इस पर डिप्लोमा कोर्स किया जाता है साँथ ही उस दुकान में वह व्यक्ति का बैठना अनिवार्य होता है ताकि दवाई वितरण में किसी प्रकार की कोई कोताही न हो इन सबके बाद सम्बन्धित डिग्रीधारी का मेडिकल स्टोर के सामने नाम व उसकी योग्यता चस्पा होना चाहिए अंतिम पैमाने में स्वास्थ्य अमले व ड्रग असोसिएशन से रजिस्ट्रेशन भी अनिवार्य है किंतु इन सबके इतर पाण्डेय का मेडिकल स्टोर और क्लीनिक बेझिझक चल रहे हैं।इस पूरे मापकों में स्वास्थ्य अमले को अगर किनारे कर दें तो जिले में बैठे ड्रग इंस्पेक्टर की कार्यवाही व उनकी मानीटरिंग पर सवाल उठना तो लाजमी है।